भारत में बुलेट ट्रेन ; सुविधा या दुविधा
बुलेट ट्रेन भारत के लिए दोनों हाथों में लडडू के समान (Win-Win Condition) है अपितु हम इसके द्वारा होने वाले कुछ दुष्प्रभावों को भी अनदेखा नहीं कर सकते हैं। सरकार का यह दायित्व बनता है कि इन दुष्प्रभावों को समाप्त कर या उनके प्रभावों को कम करके इस परियोजना को सुव्यवस्थित तरीके से चलायें।रही बात की बुलेट ट्रेन सुविधा या दुविधा है तो अब अाप खुद अंदाजा लगा सकते है।
शिक्षक दिवस पर कविता (गुरु पर कविता )
पल भर मेें कैसे सुना सकूँगा, गुरुवर
बर्षों की तेरी परिभाषा को ॥जीवन की हर आशा को ,
हम सब की अभिलाषा को ,
घनघोर घटा बनकर छाये
इस निर्मम निराशा को ,
कुंठित मेरे स्वर थे दोहराये
गुरुवर तेरी हर भाषा को ।
पल भर मेें कैसे सुना सकूँगा
बर्षों की तेरी परिभाषा को ॥क्रोध दिखा तो देखा दुर्वासा को ,
अपने आँखों मेें फैले हताशा को ,
डर कर के ना संभल पाते
गर ना पाते आपकी दिलासा को ,
स्वर्ण बना रखा है जिसने
इस तांबे के कांसा को ।
पल भर मेें कैसे सुना सकूँगा
बर्षों की तेरी परिभाषा को ॥देखा जीवन की तीव्र तमाशा को ,
पानी तक मिली ना प्यासा को ,
दर – दर भटकता ही रहता
खाली लिए बैठे कासा को ,
पर साखों ने कोपल को मोड़ दिया
अौर आपने मेरे हर जिज्ञासा को ।
पल भर मेें कैसे सुना सकूँगा
बर्षों की तेरी परिभाषा को ॥
सुनीत मिश्रा
बिमुद्रीकरण मुनाफा या घाटे का सौदा ????
प्रिय देशवासियों ,क़ुछ मोदी विरोधी पत्रकारों , और देशविरोधी विचारों के द्वारा कुछ गलत बातों का दुस्प्रचार किया जा रहा है जिसमें से विमुद्रीकरण भी एक है | आज कुछ लोगों ने लिखा और कुछ NEWS Channels ने दिखाया कि नोटबंदी विफल हुई, 14 लाख 44 हज़ार करोड़ करेंसी में से 16 हज़ार करोड़ ही नहीं आएँ। 8 हज़ार करोड़ नए नोट छापने में लगे। नोटबंदी का कोई फ़ायदा नहीं हुआ, सबको लम्बी लम्बी क़तारों में लगवाने से देश का घाटा हुआ, आदि आदि।
मुझे नहीं पता कि नोटबंदी के बहुआयामी लाभ इन लोगों को क्यों नहीं दिखाई दे रहा है , उन लोगों के लिए निम्न तथ्य प्रस्तुत हैं-
जैसा कि जगज़ाहिर है कि अर्थव्यवस्था में 15 लाख 44 हज़ार के अलावा जाली नोटे भी थी, जिसका सही -सही अनुमान किसी के पास में नहीं है कितनी थी! एक लाख करोड़ थी या 2 लाख करोड़ थी। लेकिन जो भी थी वो नोटबंदी के दौरान नष्ट हो गई, इतना तो आप जानभूझ के भले न लिखे लेकिन इसे इनकार तो क़तई नहीं कर सकते हैं! ये आप भी जानते हैं। फिर भी बैंकों में रोज़मर्रा के कैश गणना के दौरान मिलने वाली जाली नोटों की प्रायिकता से पाया कि कुल मूल्य की कोई कम से कम 6% जाली नोटें होनी चाहिए अर्थ व्यवस्था में! माने कोई 1 लाख करोड़ के आस पास! ये जाली नोटें नष्ट हो गई! मतलब यदि 16000 करोड़ नहीं लौटी और साथ साथ 1 लाख करोड़ नष्ट भी हुई! तो कुल आँकड़ा बनता है 1 लाख 16 हज़ार करोड़! मतलब इतना न्यूनतम है, इससे ज़्यादा भी हो सकता है! आशा है आप समझ रहे होंगे! हम ये मानकर चल रहे हैं कि पत्रकार होते हुए भी आपको थोड़ी बहुत गणित आती होगी।
दूसरी बात, सामाजिक दृष्टिकोण से देखें तो ये एक लाख 16 हज़ार करोड़ रुपया किसके पास था, ये भी सोचने योग्य बिषय है! मतलब आतंकियों के पास था, या नक्सल के पास था, अपराधी के पास था। आम आदमी जिन्हें घोषित आया से ज़्यादा रक़म जमा करने पे पकड़े जाने का डर तो था लेकिन उन्हें केवल अर्थदंड देना था,उन्होंने बिना डरे नोट जमा किया, क्योंकि अर्थदंड के बाद भी उन्हें लाभ था! ऐसी बड़ी आबादी थी! अब ये जो एक लाख 16 हज़ार करोड़ हैं, ज़ाहिर है कि ये पैसा उन्ही के पास था, जिनके आपराधिक कारणों से पकड़े जाने का डर था, मतलब अपराधी, आतंकी, नक्सली, अतः ये वापस नहीं आए! इससे उनकी शक्ति कम हुई! मतलब शैतानों के पास से 1 लाख 16 हज़ार करोड़ लूट जाना कोई छोटी मोटी बात नहीं है! शैतानी शक्तियाँ कमज़ोर हुई हैं! मुझे नहीं पता आपके शैतानों के साथ अवैद्य सम्बंध हैं या नहीं।
तीसरी बात नोटबंदी से देश में कितने अमीर हैं, कितने ग़रीब ये सरकार को पता चल गया है, 60 लाख ऐसे बड़े नाम सामने आएँ हैं जिनकी इंकम तो बहुत ज़्यादा है लेकिन कभी इंकम टैक्स नहीं दिया। उन्हें Operation Clean Money के तहत नोटिस जा रहा है, नए टैक्स पेयर बन रहे हैं, टैक्स बेस बढ़ रहा है, GST सही सही लागू करने में ये मिल का पत्थर है, माने अब जीवन भर इसका फ़ायदा मिलेगा! और साथ ही डाटा माइनिंग के साथ नए नाम आते जा रहे हैं जिनकी संख्या करोड़ों में हैं, मतलब इंकम टैक्स विभाग को लम्बा प्रोजेक्ट मिल गया है राजस्व बढ़ाने व टैक्स चोरी रोकने का! ये लंबा चलेगा, जिसके दूरगामी परिणाम होंगे! जिससे इंकम टैक्स दर कम होने की सम्भावना प्रबल हो गई है।
चौथी बात अब अर्थव्यवस्था में छोटे नोटों का चलन बढ़ रहा है, 50, 100, 200 के नोटों का प्रतिशत बढ़ रहा है, साथ ही सरकार सारे नोट नहीं छापेगी, बाक़ी सॉफ़्ट करेंसी का चलन रहेगा, जिससे करप्शन में कमी आएगी।
देश की जनता सब समझ रही है और वक़्त आने पर वो इसका हिसाब देगी भी और लेगी भी ,
इस बातपर देश की जनता ही निर्णय लेगी कि बिमुद्रीकरण मुनाफा या घाटे का सौदा ????
तो पाकिस्तान क्यों नहीं चले जाते ????? (कविता ) भारत के गद्दारों पर
भारत मेें ही रह पाते हो ,
भारत का दिया ही खाते हो ,
सारे सुख – सुविधा भोग यहाँ के,
पाकिस्तान का गुण गाते हो ।
तुम लोगों जैसा कोई गद्दार नहीं ,
तुम पाकिस्तान के जीत का जश्न मनाते हो ॥
अगर इतनी ही मोहब्बत है पाकिस्तान से
तो पाकिस्तान ही क्यों नहीं चले जाते हो ??????
आतंकियों से प्यार जताते हो ,
उनके जनाजे मेें उमड़ जाते हो,
विपदा मेें जो सेना बचाए तुमको ,
फिर उसपे ही पत्थर चलाते हो ।
बुरहान ,अफजल बन तो जाते हो,
पर अपनी जिन्दगी कम कर जाते हो,
अंजाम देख लो उन सब का,
कुत्ते की मौत मर जाते हो ।
अपने तिरंगे से तुम्हें दिक्कत है
पर छुप -छुप कर पाकिस्तान का झण्डा फहराते हो॥
अगर इतनी ही मोहब्बत है पाकिस्तान से
तो पाकिस्तान ही क्यों नहीं चले जाते हो ॥
सुनीत मिश्रा
Father’s Day (पापा पर कविता)
जिनकी मेहनत से घर मेें खुशियों की बरसात हो जाती है
पर अक्सर घर आने मेें उन्हें देर रात हो जाती है ।
मैं खुशनसीब हूँ कि हर डगर पर उन्हें पाता हूँ
जब भी मैं आँखें खोलता हूँ तो पापा से मेरी मुलाकात हो जाती है ॥
अौर कुछ इस कदर मेरे पापा की मेहनत रंग लाती है
कि कभी स्याही तो कभी दवात हो जाती है ॥
यूंही जान बूझकर पुछ लेते है कुछ बातें ऐसी,
फिर उनसे दोस्ती की शुरुआत हो जाती है ॥
कुछ कठिनाइयाँ अक्सर डराती रहती है मुझको
पर पापा गर साथ हो तो वो भी छोटी बात हो जाती है ॥
वो हर पल अपने खून – पसीने से सिंचते है मुझको
उनके कारण ही जिन्दगी मेरी सौगात हो जाती है ॥
सुनीत मिश्रा
$ माँ पर कविता $
माँ
कोई अौर झुलाता है झुले मेें तो भी रो जाता हूँ ,
मैं तो बस अपनी माँ की थपकी पाकर ही सो जाता हूँ।
कुछ ऐसे मेरी माँ की सारी खुबियाँ ही मुझमें आ गई,
मैं दर्द मेें भी मुस्कुराता हूँ अौर माँ जैसा हो जाता हूँ।
यूँ तो जमाने के नजरों मेें मैं बड़ा हो गया हूँ ,
पर जब भी माँ से दूर होता हूँ तो रो जाता हूँ।
चारदिवारी से घिरा वो कमरा बिना तेरे माँ घर नहीं लगता ,
मैं हर – रोज अपने ही कमरें मेें मेहमान हो जाता हूँ।
जब मैं तेरी दुखों को अौर तुझे समझने बैठता हूँ माँ ,
कुछ देर तलक बेसुध सा हो जाता हूँ।
यूँ तो अक्सर गलतियों की कठपुतली हो जाता हूँ ,
पर माँ के सिर्फ़ पुच्कार पाकर इंसान हो जाता हूँ।
मैं रात – रात भर जागता ही रहता हूँ माँ ,
अब तेरे आँचल मेें छुप कर कहाँ सो पाता हूँ।
सुनीत मिश्रा
Secularism का चोला एक अभिशाप ????
Secularism (पन्थनिरपेक्षता ) या (धर्मनिरपेक्षता ) धार्मिक संस्थानों व धार्मिक उच्चपदधारियों से सरकारी संस्थानों व राज्य का प्रतिनिधित्व करने हेतु शासनदेशित लोगों के पृथक्करण का सिद्धांत है ।
secularism के मूलतः दो प्रस्ताव है :-
(1.) राज्य के संचालन एवं नीति – निर्धारण मेें मजहब का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
(2.) सभी धर्म के लोग कानून , संविधान एवं सरकारी नीति के आगे समान है ।
secularism शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग British Writer George Jacob Holyoake ने 1851 मेें किया था।
पन्थनिरपेक्ष (secular) समाज के कुछ सकारात्मक विचारें :-
(1.) प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान हो , अौर हर उस छोटे से समूह का भी सम्मान हो जिसका वो हिस्सा हो ।
(2.) प्रत्येक व्यक्ति को समानता का अधिकार हो ।
(3.) हर व्यक्ति अाजाद होना चाहिए अपनी विशेष उत्कृष्टता को महसूस करने के लिए ।
(4.) जाति अौर वर्ण के बाधाओं को तोड़ने की स्वतंत्रता ।
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अब तक उपर दिये गए तथ्य secularism को समझने के लिये काफी है , अौर यह ही उचित परिभाषा है। अौर इसको मानने मेें मेरे समझ से किसी को कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।
पर जब भी मेरी नजर तथाकथित secularism की अोर जाती है तो हमेशा इसका बदला हुआ स्वरूप ही मिलता है ।
कुछ उदाहरण के साथ मैं इस बात को साबित करना चाहता हूँ :-
(1.) कोई प्रधानमंत्री (नरेन्द्र मोदी ) के सर पर फतवा देता है (इमाम बरकाती) , तो उस पर एक FIR तक नहीं होती , पर कोई एक राज्य के मुख्यमंत्री (ममता बनर्जी) पर कुछ कह दे तो केश के साथ जेल भी हो जाती है।
(2.) कमलेश तिवारी अगर मुस्लिम धर्म पर कुछ कहते है तो उन पर फौरन राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) लग जाता है अौर उन्हें फौरन जेल मेें डाल दिया जाता है , पर कोई इमाम बरकाती हो तो वो हिन्दू धर्म के खिलाफ कुछ भी बोल सकता है , वो भारत के खिलाफ पाकिस्तान से मिलकर जंग की धमकी दे सकता है , कत्लेआम की धमकी , आतंक फैलाने की धमकी दे सकता है । ये वहीं बरकाती है जो अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी अोसामा -बिन – लादेन के लिए प्रार्थना सभा अपनी मस्जिद मेें किया था ।पर उसको सब माफ़ उसपर कोई कार्यवाही नहीं होती ।
यहीं तो भारत का सेक्युलर कानून है , जिसका एकमात्र लक्ष्य हिन्दुओं का दमन करना अौर इसाई तथा जिहादी कट्टरपंथियों का संरक्षण करना ।
उदाहरण मैं आपको बताता हूँ :-
* कुछ दिन ही पहले की ही बात है आपको याद भी होगा , आगरा मेें कुछ हिन्दुओं ने कुछ मुस्लिमों की घर वापसी करवाई तो उन पर फौरन केश दर्ज कर लिया गया , पर पुरे देश मेें इसाई मिशनरियों द्वारा गरीब हिन्दुओं को डरा कर , लालच देकर , बहला कर धर्मांतरण करवा रही है , पर उन पर कोई भी secular सरकार आजतक कार्यवाई नहीं कर पाई ।
secular मिडिया को भी थोड़ा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अगर वो अखलाख की मौत पर जितना कवरेज देती है उतना ही केरल मेें हो रहे RSS कार्यकर्ताओं के हत्याअों पर भी देना चाहिए।
थोड़ा ध्यान मैं उच्चतम न्यायालय का भी आकर्षित करना चाहूँगा। High Court अौर supreme Court of India मेें भी कभी – कभी ऐसा ही सेक्युलर प्रभाव देखने को मिलता है।
उदाहरण कुछ इस प्रकार है :-
दही – हांडी :- हम दखल देंगे (सुप्रीम कोर्ट )
जलीकट्टू :- हम दखल देंगे (सुप्रीम कोर्ट )
होली , दीपावली(रंग , पटाखें) :- हम नियम बनायेंगे (सुप्रीम कोर्ट )
तीन तलाक , हलाला – मजहब का मामला हुआ तो हम दखल नहीं देंगे (सुप्रीम कोर्ट ) ॥
अौर कानून को भी ये ध्यान रखना चाहिए की गोरक्षा का कार्य भी कानून के अंतर्गत ही होना चाहिए , जबरन हमलों पर कठोर दंड का प्रावधान होना चाहिए ताकि केवल मजहब के नाम पर भेदभाव नहीं हो सके ।
आज भारत मेें सेक्युलर होने का मतलब यह रह गया है कि आप हिन्दुओं का विरोध करें अौर मुस्लिमों अौर इसाईयों के गलतियों का भी संरक्षण करें।
अौर यह अमानवीय Secularism ही भारत के लिए सबसे बड़ा अभिशाप बना हुआ है । कुछ यू़ं भी कह सकते है कि :-
खोखली होती secularism की जड़े या महज एक छलावा !
मेरे विचार मेें secularism से मतलब :-
सबको समान अधिकार , सबको सम्मान मिलना चाहिए चाहें वो किसी भी जाति , धर्म या सम्प्रदाय का ही क्यों ना हो ।
” सच हो या झूठ हो उसका पहचान होना चाहिए ,
गलत ही सही पर सच्चा इंसान होना चाहिए।
अौर तुम कभी मुझे रंग – गुलाल दो अौर मैं तुम्हें सेवइयाँ,
सुनीत ऐसा ही कुछ मेरा हिन्दुस्तान होना चाहिए॥”
आदिवासी से नक्सली तक का सफर
तथाकथित माओ की विचारधारा से प्रभावित ये असंवैधानिक विचार पहली बार पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से अाया है । यह मुलत: एक वामपंथी विचारधारा है जो राजनितिक तौर पर भी प्रयासरत है । इसकी दो मुख्य घटक दल communist party of india (Marxist) अौर communist party of india ( Marxist- Leninist) है ।
जमीन के झगड़े को लेकर वहाँ के कुछ दबे – कुचले किसानों ने वहाँ के जमींदार पर हमला कर दिया ,अौर फिर वहाँ के कुछ अौर किसानों ने जमींदारों पर हमला करना शुरु कर दिया ।अौर फिर यह एक मुहिम की तरह उपजने लगा अौर कुछ लोग इसका राजनैतिक तौर पर इस्तेमाल करने लगे । बंगाल से शुरु होकर फिर भारत के तमाम पिछड़े इलाकों मेें इसका प्रचार – प्रसार शुरू हुआ। ये लोग गरीबी से तंग आकर या लोगों के बहकावे मेें आकर बड़े तादाद मेें नक्सली बनने लगे ।
भारत जैसे विशालकाय विकासशील देश मेें गरीबी होना लाजमी है पर इसका यह मतलब कतई नहीं है कि हम समाज की मुख्यधारा को छोड़कर हथियार उठा लें। आये दिन रोज नक्सली वारदातों से दहलते हुए भारत को शायद इसको जड़ से खत्म करने पर विचार अवश्य करना चाहिए। क्योंकि विचार अगर देश अौर समाज पर बोझ बन जाये तो ऐसे विचारों को जड़ से उखाड़ कर फेंक देना ही उचित है ।
इस विचारधारा को जड़ से खत्म करने के लिए इसे राजनीति से, विश्वविद्यालयों से तथा मिडिया से तनिक भी देर किये बिना बेझिझक खत्म करने का प्रयास करना चाहिए। हो सकता है इन कदमों से देश मेें कुछ अस्थिरता आ जाये अौर हो सकता है कि सरकार को भी इसका कुछ नुकसान उठाना पड़े , पर समाज अौर सरकार के ये ध्यान रखना चाहिए कि जब जख्म बड़ा हो जाये तो उसके नासुर बनने से पहले ही उसे अपने शरीर से काट कर अलग कर देना चाहिए भले ही वो हमारे शरीर का अभिन्न अंग ही क्यों ना हो ।
ये नक्सली आजतक ग्रामिणों को,आदिवासीयों को शिक्षा से दूर रखने मेें सफल रहें है अौर इसी कोशिश मेें लगे हुए है । ये इन लोगों को डरा कर या बहला कर जबरन अपने समुह मेें भर्ती कर रहें है ।
जहाँ समाज अपने पिछड़ेपन को छोड़कर मुख्य धारा से जुड़ रहा है वही ये आदिवासी मुख्यधारा से दूर जाते जा रहे है । सरकार के द्वारा उठाए जा रहे बहुतायत कदम छिटपुट ही साबित हो रहा है , सरकार को अगर आदिवासीयों का विकास करना है तो सर्वप्रथम इन विचारों को जड़ से समाप्त करना आवश्यक है ।
सेना की जान जरूरी है ????
या जबरन का मानवाधिकार जरूरी है?
—
तो क्या अभिव्यक्ति का अधिकार जरूरी है?
—
बात बहुत हुई बरसों-तरसों,
अब एक लात जरूरी है।।
—
छोड़ो चर्चा पैलेट गन पर,
सर्जिकल स्ट्राइक दो-चार जरूरी है।।
—
जब तक ख़तम हों ना जाएं ये कीड़े,
गोली की बौछार जरूरी है।।
—
बुजदिल हमला करते छिप-छिप कर हम पर,
अब कुनबे मेें भी उनके हाहाकार जरुरी है।।
—
चोटिल होती माँ की ममता घायल आँचल जिनसे है,
सीना ताने वो चलते हैं, अब उनकी हार जरुरी है ।।
—
बेसुध बैठी है जनता हम खुद ही खुद मेें उलझे है,
जो सुलगे ना हम इन बलिदानों पर तो खुद पे धिक्कार जरुरी है।।
—
काटे घर में बैठे दुश्मन एक ऐसी तलवार जरुरी है,
सेना की जान ज़रूरी है… सेना की जान ज़रूरी है…
Er. Sunit Kumar Mishra
Lecturer Mech. Engg. Dept.
IMS Engg. College Ghaziabad