शिक्षक दिवस पर कविता (गुरु पर कविता )

पल भर मेें कैसे सुना सकूँगा, गुरुवर
बर्षों की तेरी परिभाषा को ॥

जीवन की हर आशा को ,
हम सब की अभिलाषा को ,
घनघोर घटा बनकर छाये
इस निर्मम निराशा को ,
कुंठित मेरे स्वर थे दोहराये
गुरुवर तेरी हर भाषा को ।
पल भर मेें कैसे सुना सकूँगा
बर्षों की तेरी परिभाषा को ॥

क्रोध दिखा तो देखा दुर्वासा को ,
अपने आँखों मेें फैले हताशा को ,
डर कर के ना संभल पाते
गर ना पाते आपकी दिलासा को ,
स्वर्ण बना रखा है जिसने
इस तांबे के कांसा को ।
पल भर मेें कैसे सुना सकूँगा
बर्षों की तेरी परिभाषा को ॥

देखा जीवन की तीव्र तमाशा को ,
पानी तक मिली ना प्यासा को ,
दर – दर भटकता ही रहता
खाली लिए बैठे कासा को ,
पर साखों ने कोपल को मोड़ दिया
अौर आपने मेरे हर जिज्ञासा को ।
पल भर मेें कैसे सुना सकूँगा
बर्षों की तेरी परिभाषा को ॥

      सुनीत मिश्रा 

Author: Inspiring Blog

लेखक , कवि ,शायर , Engineer, Motivator, Public Speaker.

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